Tuesday, October 26, 2010

भ्रमर-फूल संवाद

गुँजन करता एक भँवरा,जब फूल के पास आया
देख कली की सुन्दरता को मन ही मन मुस्काया

खिली कली को देखकर  ,मन ही मन शरमाया
रहा नहीं काबू जब मन पर ,तो एसा फ़रमाया 

अरे कली तू बहुत ही सुन्दर ,क्या करूँ तेरा गुणगान
तेरे लिए तो लोग मरते हैं ,   तू  है बड़ी  महान

देख  तरी सुन्दरता को मन पे रहा न काबू है
दुनिया का मन मोह ले तू , तुझमे तो वो जादू है

तेरी एक झलक पाने को मैं जीता और मरता हूँ
तेरे न मिलने पे तो  मैं, दिन रत आहें  भरता हूँ

 महक से तेरी महके दुनिया तेरे लिए हूँ  मैं कुरवान
 तेरे बिना अधूरी दुनियां , हर जगह लगे समसान

भ्रमर कहे  फूल से, रंग भर दे मेरे जीवन में
तब कली ने शब्द कहे सोच के मन ही मन में


बड़ी -बड़ी बातें करके, क्यों मेरे  को  बहलाता है
दुनिया भर की प्रशंसा से भ्रमर क्यों भ्रम में लता है

जब तक खिली नहीं थी , मैं तो तू बड़ा इठलाता था
मैं तो तेरी राह तकती पर तू देखकर  नजर चुराता था

जब मेरे पास कुछ न था तो तू कभी न आया था
मैं बनूँगी एक दिन ऐसी भी तेरी समझ न आया था

अरे भ्रमर तू है मतलबी, कभी काम न मेरे आएगा
जब लगूंगी मैं मुरझाने तो कभी गीत न मेरे गायेगा

कल जब दिन होंगे बुरे तो साथ मेरा छोड़ जाएगा   
देख कोई सुन्दर सी कली उधर ही तू मुड जाएगा

आज़ाद कहे कली "दयालु ", दया फूल पे आयी
दे  दी  इजाजत  भंवरे को ,पर  बात है  ये सुनाई

तू भँवरा मद्यपान का प्यासा प्यास तो तेरी बुझाऊं
पर  पहले मुझे ये वचन दे, कि  छोड़ तुझे न जाऊं

भ्रमर--हे फूल मेरे जीवन छोड़ तुझे न जाऊं
 करूँ खुदा से वंदना, तुझसे पहले मर जाऊं....


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