Wednesday, December 8, 2010

ताकत कलम की

क्यूँ रखूं  अपनी कलम में  स्याही ,,
जब कलम से कुछ लिख सकता ही नही .
न जाने क्यों व्यर्थ की कोशिश करता हूँ
जब कवि या लेखक बन सकता ही नही.
चाहता हूँ बहुत सरे उपन्यास लिखूं पर
चेतन भगत या कमल झा तो बन सकता नही.
दिल करता है सारे ग़मों को ही लिख डालूं,,
 पर मेरे ग़मों की खबर किसी को है ही नही.
चाहता हूँ  खुदा  के बारे में जिक्र करूँ ,,
पर सुना है वो तो किसी को मिलता ही नही.
डूबती किश्ती पर तो लिख ही क्या सकता हूँ
जब किश्ती किसी तूफां सेब गुजरी ही नही ..
ताकत तो बहुत है मेरी कलम में  पर शायद ,,
मेरे पास मेरी भावनाओं की कोई क़द्र ही नही //