Thursday, May 28, 2015

"मैं " , " वो " , और एक " वो "

जिंदगी में कई बार हम उनके पीछे भागते हैं 
जो  किसी और के पीछे भागते हैं
और कोई हमारे पीछे पागल होता है और 
ये सिलसिला चलता ही रहता है ........ये सिलसिला देख चंद पंक्तियाँ याद आयीं ........


तू दे दे वक्त तेरी यादों को थमने का
मैं भी वक़्त दे दूं उसको समझने का 
अनजाने में खायी तुझसे ठोकर  मैंने  
पर दे दूँ वक़्त अब उसको संवरने का 

जनता हूँ महोबबत नापसंद है मेरी तुझको
फिर भी तेरी हर पसंद, पसंद है मुझको
एक मेरी जिंदगी है जो भागती है पीछे तेरे 
एक वो कहती है "जिंदगी वार दी तुझको "

मैं नीद गावाता हूँ सपनों में तेरे
वो सपने संजोती है पाने को मेरे
तू हर पल दूर भागती है मुझसे
वो तरसती है करीब आने को मेरे

होठों पे मेरे बस अल्फ़ाज़ तेरे हैं 
गमों की शाम चाहतों के सवेरे हैं
चाहते हैं हर पल बेहिसाब तुमको 
वो कहती हैं "तुम हर पल मेरे हैं"

मुस्कान तेरी खुद को गिरवी रख खरीद लाये
कश्ती न बन सके तेरी, किनारे ही बन जाए
तुम हो की नज़र चुराती हो हर पल मुझसे
वो कहती है" काश तू मेरा आईना बन जाये"

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