अग्नि की लौ में सिमटकर क्यों न एक दीपक बन जाऊं
तम प्रकाश का बनकर जाली तम का नाम मिटाऊं ,,
जलकर खुद ही दूजों को , मैं रोशन कर जाऊं
छोड़ स्वार्थ परोपकार में,मैं अपना जीवन बिताऊं ,,
खुद के आभाव मिटा सकूँ न पर दूजों के आभाव मिटाऊं
जीता रहूँ दूजो के लिए , दूजों के लिए ही मर जाऊं ,,
ज्वाला है दीपक की रानी ,गीत ज्वाला के गाऊं
गिने मुझे ही रोशनी , मैं सबको लौ दिखाऊं ,,
लेकिन परिस्थिति देखकर कभी न मैं घबराऊं
आंधी तूफानों से टकराकर भी न बुझाने पाऊं ,,
कठिनाइयों को देखकर ,क्या एक " छाया" बन जाऊं
नहीं नहीं जब प्रण किया तो असंभव नहीं जो कर न पाऊं ,,
इससे पहले कि अंत हो मेरा शून्य में मैं मिल जाऊं
दूजों को रोशन करने के सारे काज पूर्ण कर जाऊं ,,
फिर चिन्ह छोड़ मरू के जीवन में एक हिचक भर भुझ जाऊं
दुनिया क़ी नज़रों की रात्रि का , एक चाँद मैं बन जाऊं ,,,,,,, अजय आजाद
IIT DELHI
Wednesday, October 27, 2010
Tuesday, October 26, 2010
भ्रमर-फूल संवाद
गुँजन करता एक भँवरा,जब फूल के पास आया
देख कली की सुन्दरता को मन ही मन मुस्काया
खिली कली को देखकर ,मन ही मन शरमाया
रहा नहीं काबू जब मन पर ,तो एसा फ़रमाया
अरे कली तू बहुत ही सुन्दर ,क्या करूँ तेरा गुणगान
तेरे लिए तो लोग मरते हैं , तू है बड़ी महान
देख तरी सुन्दरता को मन पे रहा न काबू है
दुनिया का मन मोह ले तू , तुझमे तो वो जादू है
तेरी एक झलक पाने को मैं जीता और मरता हूँ
तेरे न मिलने पे तो मैं, दिन रत आहें भरता हूँ
महक से तेरी महके दुनिया तेरे लिए हूँ मैं कुरवान
तेरे बिना अधूरी दुनियां , हर जगह लगे समसान
भ्रमर कहे फूल से, रंग भर दे मेरे जीवन में
तब कली ने शब्द कहे सोच के मन ही मन में
बड़ी -बड़ी बातें करके, क्यों मेरे को बहलाता है
दुनिया भर की प्रशंसा से भ्रमर क्यों भ्रम में लता है
जब तक खिली नहीं थी , मैं तो तू बड़ा इठलाता था
मैं तो तेरी राह तकती पर तू देखकर नजर चुराता था
जब मेरे पास कुछ न था तो तू कभी न आया था
मैं बनूँगी एक दिन ऐसी भी तेरी समझ न आया था
अरे भ्रमर तू है मतलबी, कभी काम न मेरे आएगा
जब लगूंगी मैं मुरझाने तो कभी गीत न मेरे गायेगा
कल जब दिन होंगे बुरे तो साथ मेरा छोड़ जाएगा
देख कोई सुन्दर सी कली उधर ही तू मुड जाएगा
आज़ाद कहे कली "दयालु ", दया फूल पे आयी
दे दी इजाजत भंवरे को ,पर बात है ये सुनाई
तू भँवरा मद्यपान का प्यासा प्यास तो तेरी बुझाऊं
पर पहले मुझे ये वचन दे, कि छोड़ तुझे न जाऊं
भ्रमर--हे फूल मेरे जीवन छोड़ तुझे न जाऊं
करूँ खुदा से वंदना, तुझसे पहले मर जाऊं....
देख कली की सुन्दरता को मन ही मन मुस्काया
खिली कली को देखकर ,मन ही मन शरमाया
रहा नहीं काबू जब मन पर ,तो एसा फ़रमाया
अरे कली तू बहुत ही सुन्दर ,क्या करूँ तेरा गुणगान
तेरे लिए तो लोग मरते हैं , तू है बड़ी महान
देख तरी सुन्दरता को मन पे रहा न काबू है
दुनिया का मन मोह ले तू , तुझमे तो वो जादू है
तेरी एक झलक पाने को मैं जीता और मरता हूँ
तेरे न मिलने पे तो मैं, दिन रत आहें भरता हूँ
महक से तेरी महके दुनिया तेरे लिए हूँ मैं कुरवान
तेरे बिना अधूरी दुनियां , हर जगह लगे समसान
भ्रमर कहे फूल से, रंग भर दे मेरे जीवन में
तब कली ने शब्द कहे सोच के मन ही मन में
बड़ी -बड़ी बातें करके, क्यों मेरे को बहलाता है
दुनिया भर की प्रशंसा से भ्रमर क्यों भ्रम में लता है
जब तक खिली नहीं थी , मैं तो तू बड़ा इठलाता था
मैं तो तेरी राह तकती पर तू देखकर नजर चुराता था
जब मेरे पास कुछ न था तो तू कभी न आया था
मैं बनूँगी एक दिन ऐसी भी तेरी समझ न आया था
अरे भ्रमर तू है मतलबी, कभी काम न मेरे आएगा
जब लगूंगी मैं मुरझाने तो कभी गीत न मेरे गायेगा
कल जब दिन होंगे बुरे तो साथ मेरा छोड़ जाएगा
देख कोई सुन्दर सी कली उधर ही तू मुड जाएगा
आज़ाद कहे कली "दयालु ", दया फूल पे आयी
दे दी इजाजत भंवरे को ,पर बात है ये सुनाई
तू भँवरा मद्यपान का प्यासा प्यास तो तेरी बुझाऊं
पर पहले मुझे ये वचन दे, कि छोड़ तुझे न जाऊं
भ्रमर--हे फूल मेरे जीवन छोड़ तुझे न जाऊं
करूँ खुदा से वंदना, तुझसे पहले मर जाऊं....
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