कल मन बहुत उदास था
हमसफ़र जो न मेरे पास
था
बेवशी ने गिराया ऊपर
गम की दीवार को
दिल हर पल तरसता था
उसके दीदार को
घर से मैं यूँ ही निकल
रहा था घूमने
दिल की तन्हाई मे शायद
उसको ढूढ़ने
अचानक मेरा पैर ज़मीन
पे एसे पड़ा गया
बहुत संभाला था मैने
लेकिन फिसल के गिर गया
पास खड़े लोगो को दिखा
तो दौड़ कर आए
हाथ आगे बढ़ाया और
जल्दी से मुझे उठाए
फिर जेसे ही में उठा
और उठ के चला
अचानक से एक विचार
दिमाग़ मे पला
पहले भी कई बार गिरा
और उठ के चला
तब तो मैं अकेला खुद
ही संभला
दिल फिसलने की भी तो
यही कहानी है
संभलो कितना भी पर
इसके समझ न आनी है
आख़िर ये फिसल ही जाता
है
रोकते हुए भी ये गिर
जाता है
दिल टूटे तो इतने कमजोर
क्यू हो जाते हें
क्यू नही हम उठकर खुद
ही चल पाते हैं
गिरते हें ज़मीन पे
तो लोग उठाने आते हैं
पर दिल जब टूटे तो
लोग जान न पाते हैं
तभी तो कहता हूँ कि:
रोक लो कदम लड़खड़ाने
से पहले
पीछे मुड़कर भी नही
देखते वो गिरने वाले…