एक समय की बात है एक दंपत्ति ने बड़ी उम्मीद से अपने आंगन में यह सोचकर एक पेड़ लगाया था कि कभी बड़ा होकर वह पेड़ उनके आंगन को हरा-भरा बनाएगा |पेड़ जब छोटा था तो अती सुन्दर लगता था |
उसमे प्यारी प्यारी कोंपलें खिली थीं देखने में वेचारा प्रतीत होता था |उन लोगों ने उसमे कई साल तक खाद बीज और पानी दिया |पेड़ भी दिन दूनी रात चौगुनी दर से बढ़ने लगा
खैर यह क्रम ज्यादा नही चल सका एक मुश्किल घड़ी के समय दम्पत्ति को ही उस पेड़ कि हरी -भरी डालियों पर कुल्हाड़ी चलानी पड़ी ,और इस प्रकार उस पेड़ को के ठूंठ में बदल दिया गया | काटते समय कई बार उसने तडफडाकर यह व्यक्त भी करना चाह कि उसे न कटा जाये लेकिन सब व्यर्थ था |फिर पेड़ यह सब शंतोचित्त भाव से देखता हुआ,अपनी भावनाओं पर अंकुश लगाते हुए सब कुछ सहन करता रहा
खैर बेचारा पेड़ करता भी क्या ,कुछ दिन तक ज्यों का त्यों ठूंठ बनकर खड़ा रहा |लेकिन अब भी उस आंगन को बनाने के इरादे उसके मन में प्रवलता से बने हुए थे |
कुछ समय बीता ,एक दिन फिर से उस ठूंठ में नयी कोपलें खिलने लगीं |तने क़ी मुख्या शाखा जो कटी गयी थी उसकी साइड से एक नयी शाखा निकली जो पहली शाखा से भो ज्यादा सुन्दर लगती थी |इस बार मालिक ने उसे बढने क़ी इजाजत दे दी और वह शाखा नये पेड़ क़ी भांति दिन दूनी रात चौगुनी दर से बढने लगी |इस दौरान कई बार आंधियां चलीं ,बिजली गिरी ,तेज बारिश हुई ,तूफ़ान आया ,पतझड़ आया लेकिन वह डाली इस बार अपने आप को एक विशाल और मजबूत पेड़ क़ी भांति स्थापित करने में सफल रही |अब उस पेड़ क़ी जड़ें उस आँगन में इस कदर फ़ैल गयीं कि अब वह चाहकर भी उस आँगन से अलग नही हो सकता था |
आखिर एक दिन बसंत आया, वे दंपत्ति उस पेड़ कि छाँव में बैठकर उन पुराने दिनों को याद कर रहे थे |पेड़ भी उनको देखकर मन ही मन काफी खुश हो रहा था |अब मालिक उस पेड़ को उतना ही प्यार देता जितने
प्यार से उसने उसे लगया ,सींच कर बड़ा किया था |और एक बार फिर से वह दंपत्ति उसी पेड़ से अपने आंगन के हरा भरा होने कि उम्मीद लगाये बैठा है |'----------------
उसमे प्यारी प्यारी कोंपलें खिली थीं देखने में वेचारा प्रतीत होता था |उन लोगों ने उसमे कई साल तक खाद बीज और पानी दिया |पेड़ भी दिन दूनी रात चौगुनी दर से बढ़ने लगा
खैर यह क्रम ज्यादा नही चल सका एक मुश्किल घड़ी के समय दम्पत्ति को ही उस पेड़ कि हरी -भरी डालियों पर कुल्हाड़ी चलानी पड़ी ,और इस प्रकार उस पेड़ को के ठूंठ में बदल दिया गया | काटते समय कई बार उसने तडफडाकर यह व्यक्त भी करना चाह कि उसे न कटा जाये लेकिन सब व्यर्थ था |फिर पेड़ यह सब शंतोचित्त भाव से देखता हुआ,अपनी भावनाओं पर अंकुश लगाते हुए सब कुछ सहन करता रहा
खैर बेचारा पेड़ करता भी क्या ,कुछ दिन तक ज्यों का त्यों ठूंठ बनकर खड़ा रहा |लेकिन अब भी उस आंगन को बनाने के इरादे उसके मन में प्रवलता से बने हुए थे |
कुछ समय बीता ,एक दिन फिर से उस ठूंठ में नयी कोपलें खिलने लगीं |तने क़ी मुख्या शाखा जो कटी गयी थी उसकी साइड से एक नयी शाखा निकली जो पहली शाखा से भो ज्यादा सुन्दर लगती थी |इस बार मालिक ने उसे बढने क़ी इजाजत दे दी और वह शाखा नये पेड़ क़ी भांति दिन दूनी रात चौगुनी दर से बढने लगी |इस दौरान कई बार आंधियां चलीं ,बिजली गिरी ,तेज बारिश हुई ,तूफ़ान आया ,पतझड़ आया लेकिन वह डाली इस बार अपने आप को एक विशाल और मजबूत पेड़ क़ी भांति स्थापित करने में सफल रही |अब उस पेड़ क़ी जड़ें उस आँगन में इस कदर फ़ैल गयीं कि अब वह चाहकर भी उस आँगन से अलग नही हो सकता था |
आखिर एक दिन बसंत आया, वे दंपत्ति उस पेड़ कि छाँव में बैठकर उन पुराने दिनों को याद कर रहे थे |पेड़ भी उनको देखकर मन ही मन काफी खुश हो रहा था |अब मालिक उस पेड़ को उतना ही प्यार देता जितने
प्यार से उसने उसे लगया ,सींच कर बड़ा किया था |और एक बार फिर से वह दंपत्ति उसी पेड़ से अपने आंगन के हरा भरा होने कि उम्मीद लगाये बैठा है |'----------------