ऐ खुदा हालत-ए- इन्सां
इतनी अजीब क्यूँ है
चिरागों की आड़ में भी
अँधेरा पलता क्यूँ है
मानव ही मानवता को
बेघर करता रहता है
चाँद पैसों में ही इमान
इन्सान का बिकता क्यूँ है
जो पास है उसका तो
मोल कुछ भी नही ,
जिसे पा नही सकता
उसे खोने का डर क्यूँ है
गुजरे पलों की याद में
तलाशते रहते हैं जिन्दगी
कीमत-ए -वर्तमान पलों
में इतनी लघुता क्यूँ है
इन्सां हर जगह है पर
इंसानियत की कमी है
हर चेहरे ने पहना
इक नकाब क्यूँ है
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