azadajay
Life is fun...
Monday, February 22, 2016
Saturday, February 20, 2016
Colours of life
We study that a light source
cannot be monochromatic, similarly our life cannot be monochromatic too,
because it violates uncertainty principle. Monochromaticity leads to monotonicity
which ultimately causes indifference to life. The first question comes to my
mind is “what is life ?” . Is it all about a ‘1-D oscillation with no exact
solutions, between the boundaries of happiness and doldrums’? Sometime I also
think life is a musical instrument full of all kind of sounds, it depends on us
how do we play it and which sound we can extract out of it. Oh no I regard life
as a garden with different flowers in it with varieties of colours. These
colours of life are function of time, space, surrounding media and many more
known and unknown co-ordinates. At a particular time and place we ignore the
higher order dependence of other factors and perceive a particular colour only.
One colour in life is colour of
friendship. Defining friendship is beyond my scope or beyond my FWHM of
thinking but still dare to put some boundary conditions of words. Just for sake
of understanding I consider friendship as “A strong covalent bond formed by
sharing affinity and love unconditionally”. Conditions in friendship are like an
etching reagent which etch anisotropically.
Friendship’s cause or origin can’t be
defined but once we regard it like a postulate, we may solve all problems. It
is like postulates in quantum mechanics, for which if we don’t question the
origin or derivation (these have no origin other than a kirn of Schrodinger’s mind) we can solve any potential problem.
Life has other colours of happiness
and sorrow, love and hatred, appreciation and jealous, reality and illusions,
colours of relationships and many more. Life has a broad spectrum but our
perception limits our detectable range. Each colour has it’s complement present
there like Raman scattering has both
stocks and anti-stocks but we detect only based on our requirements or our
limitations. So what we see and what we perceive is just a fraction, life is
much more than what we think of it like.
One colour life has is of destitution.
This colour enables human being to perceive the right and filtered. If this
colour is faded completely in our life, we can’t perceive others in their real
form. Then the complement colour “So much of felicity or affluence starts
dominating. Then we start neglecting others and don’t regard human as a human
at all. In that case we seek the superiority only. The balance between the two
is like balance in the amount of UV rays
for our body. UV is required for formation of pigments in our skin but large
amount of it, causes cancer. Similarly excess of this colour leads to proudà egoism à selfishness and then
leads to execute the programme.
Colour of success and failure are
another colour which everybody encounters in their life. Colour of failure
sometime leads for wrong perception like some undesired jamming bits cause false detection by the end user. We always need
to define starting and end points to avoid dichotomy in detection.
Communication gap is like high noise signal in a channel which can always lead
for false detection/perception. In order to minimize BER we need to think that
noise is introduced by transmitter as well receiver with another components in
channel. So in case of any communication gap arose in our life, we should look
for both of the facet rather than blaming each other. In case of such large BER, we both should try to implement error correction rather than only error
detection.
So if all colours are predefined
by the nature and our paths and destination are already decided by some unknown
supreme power and monochromaticily is limited by uncertainty, then what we are
all about? Are we just kind of dolls? What is our job at all? The answer is “Today this is era of computer and IT”. If you know the programing and simulation you
can optimise an ease to your life !!!!!
I mean our job is to optimise our need of various colours, simulate and
then take into account the best amount based on our necessity. As the number of solutions is always more than that of
questions, similarly the colours available are much more than what our
requirements are concern. Our job is to pick the best suitable component of
that broad spectra (colour==
wavelength), simulate our system,
optimise our needs and then take the favourable results into account. Because
balance between all those colour component is needed to minimise the BER in life. Think all colours are good are required to run our life but the amount
matters which we need to optimise.
Thursday, May 28, 2015
"मैं " , " वो " , और एक " वो "
जिंदगी में कई बार हम उनके पीछे भागते हैं
जो किसी और के पीछे भागते हैं
और कोई हमारे पीछे पागल होता है और
ये सिलसिला चलता ही रहता है ........ये सिलसिला देख चंद पंक्तियाँ याद आयीं ........
तू दे दे वक्त तेरी यादों को थमने का
मैं भी वक़्त दे दूं उसको समझने का
अनजाने में खायी तुझसे ठोकर मैंने
पर दे दूँ वक़्त अब उसको संवरने का
जनता हूँ महोबबत नापसंद है मेरी तुझको
फिर भी तेरी हर पसंद, पसंद है मुझको
एक मेरी जिंदगी है जो भागती है पीछे तेरे
एक वो कहती है "जिंदगी वार दी तुझको "
मैं नीद गावाता हूँ सपनों में तेरे
वो सपने संजोती है पाने को मेरे
तू हर पल दूर भागती है मुझसे
वो तरसती है करीब आने को मेरे
होठों पे मेरे बस अल्फ़ाज़ तेरे हैं
गमों की शाम चाहतों के सवेरे हैं
चाहते हैं हर पल बेहिसाब तुमको
वो कहती हैं "तुम हर पल मेरे हैं"
मुस्कान तेरी खुद को गिरवी रख खरीद लाये
कश्ती न बन सके तेरी, किनारे ही बन जाए
तुम हो की नज़र चुराती हो हर पल मुझसे
वो कहती है" काश तू मेरा आईना बन जाये"
जो किसी और के पीछे भागते हैं
और कोई हमारे पीछे पागल होता है और
ये सिलसिला चलता ही रहता है ........ये सिलसिला देख चंद पंक्तियाँ याद आयीं ........
तू दे दे वक्त तेरी यादों को थमने का
मैं भी वक़्त दे दूं उसको समझने का
अनजाने में खायी तुझसे ठोकर मैंने
पर दे दूँ वक़्त अब उसको संवरने का
जनता हूँ महोबबत नापसंद है मेरी तुझको
फिर भी तेरी हर पसंद, पसंद है मुझको
एक मेरी जिंदगी है जो भागती है पीछे तेरे
एक वो कहती है "जिंदगी वार दी तुझको "
मैं नीद गावाता हूँ सपनों में तेरे
वो सपने संजोती है पाने को मेरे
तू हर पल दूर भागती है मुझसे
वो तरसती है करीब आने को मेरे
होठों पे मेरे बस अल्फ़ाज़ तेरे हैं
गमों की शाम चाहतों के सवेरे हैं
चाहते हैं हर पल बेहिसाब तुमको
वो कहती हैं "तुम हर पल मेरे हैं"
मुस्कान तेरी खुद को गिरवी रख खरीद लाये
कश्ती न बन सके तेरी, किनारे ही बन जाए
तुम हो की नज़र चुराती हो हर पल मुझसे
वो कहती है" काश तू मेरा आईना बन जाये"
Tuesday, January 7, 2014
Wednesday, October 30, 2013
रातें गुजरती हैं महखाने में ....
अपनी भी क्या हस्ती बची है इस ज़माने में
रातें भी गुजर जाती हैं अब तो महखाने में
महोब्बत ने उनकी जख्म दिए हें हज़ारों
दिल का दर्द दूर होता नही दवाखाने में
रातें भी गुजर जाती हैं अब तो महखाने में
महोब्बत ने उनकी जख्म दिए हें हज़ारों
दिल का दर्द दूर होता नही दवाखाने में
कभी हम भी तो शरीफ हुआ करते थे
क्यूँ आ पहुंचे फिर इश्क के बागानों में
किया करते थे कभी नफरत हम शराब से
अब तो एक घूंट भी नही छोड़ते पैमानों में
क्यूँ आ पहुंचे फिर इश्क के बागानों में
किया करते थे कभी नफरत हम शराब से
अब तो एक घूंट भी नही छोड़ते पैमानों में
कितना अच्छा होता गर वो आखों से पिलाते
डूबकर मर जाते उनके आखों के प्यालों में
उनका चेहरा ही नज़र आता हर जगह
कुछ पल तो न होता महखाना " ख्यालों में "
घर-घर जा के तलाश की है हम ने, मिलती
नही इंसानियत अब इंसान के मकानों में
हो जाती है कुछ टूटे दिलों से मुलाकात यहाँ
इसीलिए हम रातें गुजर लेते हैं महखानों में .....................
डूबकर मर जाते उनके आखों के प्यालों में
उनका चेहरा ही नज़र आता हर जगह
कुछ पल तो न होता महखाना " ख्यालों में "
घर-घर जा के तलाश की है हम ने, मिलती
नही इंसानियत अब इंसान के मकानों में
हो जाती है कुछ टूटे दिलों से मुलाकात यहाँ
इसीलिए हम रातें गुजर लेते हैं महखानों में .....................
Tuesday, October 9, 2012
Friday, August 24, 2012
- - - हालत-ए- इन्सां - - -
ऐ खुदा हालत-ए- इन्सां
इतनी अजीब क्यूँ है
चिरागों की आड़ में भी
अँधेरा पलता क्यूँ है
मानव ही मानवता को
बेघर करता रहता है
चाँद पैसों में ही इमान
इन्सान का बिकता क्यूँ है
जो पास है उसका तो
मोल कुछ भी नही ,
जिसे पा नही सकता
उसे खोने का डर क्यूँ है
गुजरे पलों की याद में
तलाशते रहते हैं जिन्दगी
कीमत-ए -वर्तमान पलों
में इतनी लघुता क्यूँ है
इन्सां हर जगह है पर
इंसानियत की कमी है
हर चेहरे ने पहना
इक नकाब क्यूँ है
Sunday, June 17, 2012
हमारे नेताओं की जुबानी
इस सरकार ने बहुत लूट लिया
अब हमें इक मौका दो ,
इनकी कसर पूरी करने
हम तैयार बैठे हैं
अन्ना जी भ्रष्टाचार का
एक पेड़ तो उखाड़ो
दस और पेड़ लगाने को
हम तैयार बैठे हैं
कासब ,अफजल शरीखों को
मरो नही ,हमें सोंप दो
मेहमानी इनकी करने
हम तैयार बैठे हैं
देश प्रेम की एक भी बात
करके तो देख लो
टांग अडाने "ठाकरे जी "
तैयार बैठे हैं.
कलमाड़ी जैसे घोटाले ,तुम
भी तो करके देखो
देशभक्त बोलने दिग्विजय
तैयार बैठे हैं
घोटाले के क्षेत्र में भी
नोबल मिलना चाहिए
अनेकों नोबल भारत लाने
हम तैयार बैठे हैं
जेब अपनी थोड़ी और
टाइट कर लो
मंहगाई को और बढाने
हम तैयार बैठे हैं.
देशवासियो चिंता न करो
अपने दिल थम के बैठो
नए घोटाले का सरप्राइज देने
हम तैयार बैठे हैं.
घोटाले का टी - २०
घोटाले की टी-२० टीम ने
अच्छा खेल दिखाया है .
किसी ने अर्ध शतक मारा है ,
तो किसी ने शतक लगाया है .
लालू जी तो ओपनिंग में ही
चौके खूब लगाते हैं .
उनके आउट होते ,मनमोहन
वन-डाउन आ जाते हैं .
कलमाड़ी दुसरे छोर पे
छक्के खूब लगाते हैं
शुन्य पे आउट मनमोहन जी
मंहगाई बढ़ा जाते हैं .
फिर आखिकार अन्ना जी
एक कैच ले जाते हैं ,
कोंग्रेस वाले धकेल उन्हें
बाउंड्री बहार ले जाते हैं
ऐ राजा ने भी यहाँ पे
खेली अच्छी पारी है
उनके रिटायर हर्ट होते ही
येदुरप्पा की बारी है.
सी.बी.आई.की फील्डिंग भी
कमजोर पड़ जाती है .
रन लेते समय कोंग्रेस भी
रास्ते में अड़ जाती है .
दिग्विजय एक अम्पायर की
भूमिका यहाँ निभाते हैं
कलमाड़ी को नॉट-आउट देकर
देशभक्त कह जाते हैं .
सोनियां ने भी मैच रेफरी का
काम खूब संभाला है.
पूरी की पूरी फील्डिंग टीम पे
जुर्माना लगा डाला है...
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